सोमवार, 16 अगस्त 2010

जब मिलती है खबर अचानक किसी के ना होने की


बड़े गौर से सुन रहा था ज़माना, तुम्हीं सो गए दास्तां कहते-कहते

स्नेह बांटते, शिक्षा का अभियान चलाते, मुस्कुराते, लोगों को जीना सिखाते हुए किसी आदमी का अचानक से जाना उसके परिवार पर क्या असर डाल सकता है, यह कहने की जरूरत नहीं। उनके जाने की खबर से साहित्य, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में एक खामोशी सी छा गई। वर्चुअल वर्ल्ड में भी यह खबर जब आई तो एक शांत कर देने वाली टिप्पणी के साथ, जब युवा लेखक-पत्रकार ने संसार को अचानक से अलविदा कह देने पर लिखा- ''कुछ लोग आदमी नहीं, इंसानियत के 'पहचान-पत्र' बन जाते हैं। कविता उनकी डायरी में ठीक से उतरे न उतरे, उनके व्यवहार में पूरी शालीनता से उतर जाती है। कल मेरे जीवन से एक ऐसे आदमी का जाना हुआ, जिनका उदाहरण मैं पानी पर चांद, डायरी पर कलम की नोक और दिमाग पर पैरों के निशान की तरह देना चाहता था। उनके साथ बिताये हुए पलों ने रात भर मेरी आंखों की मालिश की। पता नहीं क्यों, पहली बार किसी के जाने से खुद को कहीं छुटा हुआ महसूस किया।'' ऐसे थे सबके अपने परम स्मरणीय श्री मिलाप दूगड़।

उनके पौत्र तेजस ने अपने दादा को कुछ इस तरह श्रद्धांजली दी-

Dadosa, We love you

When you came into this world

Every one rejoiced merry

When you departed

you left millions with bleeding tears of sadness dreary .

To the Dugar Family, You are more precious than sunken treasure,

You led us from darkness to light of happyness and pleasure.

You engraved in us, Your love and Inspiratiory

You enriched our lives with memories and pride of our enternal relation.

Your perfection in every thing that you pursued

All in one, Orator, Poet, Artist, Singer, Learner, Leader

Qualities outnumbered, into words I can't put.

Never looked back in Any decision you made

What ever you did, succeeding with joy it stayed.

The entire world's work revolving in your head,

Never was it Shown as a smile over shed.

Always joy on you face,

walking like a saint with solace.

You devoted your entire life serving all

You were the pillar of Gandhi Vidya Mandir standing tall.

you always had your arms stretched out, not for one,

But millions you kinded with a heart as big as the sun.

We are proud to be your grandchildren,

Though we wise you were here for long.

You guided us on the right path,

Your love and blessing will make us strong,

We continue this journey without you.

We wish this was untrue,

The time we spent were priceless,

DADOSA, WE LOVE YOU.

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          TEJAS DUGAR

सोमवार, 7 जून 2010

घात

-मिलाप दूगड़

तूने एक तीर झोंका था।

बहुत तुझे रोका था।

ऐसा घात झेलने का वह

पहली ही मौका था।

अंग-अंग में मस्ती भर कर

दौड़ी सुन बंसी-स्वर मनहर

अवसर धर सत्वर शर मारा


कहर भरा धोखा था!

प्रथम वार ही बेध गया उर

कैसी कसक कर गई आतुर

इस पथ पर बढ़ने से पहले

कब-किसने टोका था!

तुझको क्या, बस बाण चला कर

डूब गए अपने में, जा कर,

मेरे ऊपर क्या बीतेगी

कभी जरा सोचा था ?

शनिवार, 5 जून 2010

वेणी के फूल




बिखरे चारों ओर कहो

किसकी वेणी के फूल !

अचरज है, जाने उसको ही

क्यों जाता हूं भूल !

प्रिय- नि:श्वासित, स्पर्श-सुवासित

स्नेहल बहे समीर,

जिसकी देन उसे विस्मृत कर

मन अत्यंत अधीर।

उसके सिवा कौन हो सकता

हेतु रहित अनुकूल !

हे अत्यंत! आनंद-प्रेम-धन

आकृति के आकार,

अपने उपवन में तू ही तू

है नित-नव साकार।

जब-जब तुझे बिसारूं तब-तब

भले चुभाना शूल।

-मिलाप दूगड़

प्रस्तुत पेंटिंग्स श्री मिलाप दूगड़ के द्वारा बनाई हुई हैं।

गुरुवार, 3 जून 2010

आहट

नील-पटल से श्यामल-घट की

आहट पाई आज।

भूतल की पायल में नूतन

रुन-झुन छाई आज।

कबसे ही धरती ने केवल

तेरी आस लगाई,

किसी और से कैसे जाती

इसकी प्यास बुझाई ?

तेरी आहट सुन मन-कलिका

स्मित मुसकाई आज।

सहसा सर-सर हवा बही तो

धरती ने कुछ भांपा

उड़ा न ले प्रिय को यह सौतन

सोच कलेजा कांपा।

उसे हिमालय भैया ने झट

पकड़ बिठाई आज।

-मिलाप दूगड़

बुधवार, 2 जून 2010

स्मृति – मन्दिर














मिलन – काल का एक एक पल,

अनुपम अनुभव – धाम बन गया।

पा ली तेरी स्नेह – दृष्टि अब,

लगता मेरा काम बन गया।

उस दिन जिस-जिस भाग्यवान को

स्पर्श मिला था तेरा,

रोम-रोम वह, रन्ध्र-रन्ध्र वह

पुलकित रहता मेरा।

वह स्पन्दन, स्फुरण सुमनशर

नित-नव अनुसन्धान बन गया।

तेरी चारु चेष्टा, मेरा

उर कर गई तरंगित,

मेरा हर पल, हर क्षण तेरी

प्रियता से आप्लावित

स्मृति की चूनर में तारों का

झिल-मिल दिव्य वितान बन गया।

सांसों की स्वर-लय संगति में

शब्द अकथ सज पाना,

अधरसुधा-सिंचित हृदयों का

एक-रूप हो जाना।

रस से भींगा युग-प्रसून वह

जीवन की मुस्कान बन गया।

स्मृति- मंदिर में उस निमेष की

प्राण-प्रतिष्ठा कर ली,

रीति-नीति से अर्चन-पूजन

की भी निष्ठा भर ली।

पर मिलाप के मधुर ध्यान में

विरह-ध्यान व्यवधान बन गया।

- मिलाप दूगड़

सभी चित्र 1 दिसंबर 2009 के हैं। इसमें श्री मिलाप दूगड़ मॉरीशस के राष्ट्रपति व उनकी श्रीमति के साथ प्रवासी फिल्म फेस्टिवल के समारोह सम्राट होटल दिल्ली मेंहामहिम अनिरूद्ध जगन्नाथ

मंगलवार, 18 मई 2010

समर्पण



तू जो मुझको पीड़ाओं का
लंबा- सा इतिहास न देता,
तो मुझसे यह गीतों का
भूगोल कहां से लिखवा लेता!

तू ही तो इतिहास असल में
तू ही है भूगोल-खगोल
तेरी स्नेहिल अनुकम्पा ही
यत्र-तत्र सबसे अनमोल।

हां, तूने ही कलम पकड़ कर
मुझसे यह सर्जन करवाया,
प्रियवर, तेरा तुझे समर्पित
भला-बुरा जो भी बन पाया।
(हालांकि इस कविता के भाव और समर्पण किसी और संदर्भ में हैं... फिर भी ब्लॉग का पहला पोस्ट पूज्य पिताजी के लिए/ प्रस्तुत कविता श्री मिलाप दूगड़ जी के काव्य-संग्रह 'पीयूष दंश' से ली गई है)