लंबा- सा इतिहास न देता,
तो मुझसे यह गीतों का
भूगोल कहां से लिखवा लेता!
तू ही तो इतिहास असल में
तू ही है भूगोल-खगोल
तेरी स्नेहिल अनुकम्पा ही
यत्र-तत्र सबसे अनमोल।
हां, तूने ही कलम पकड़ कर
मुझसे यह सर्जन करवाया,
प्रियवर, तेरा तुझे समर्पित
भला-बुरा जो भी बन पाया।
(हालांकि इस कविता के भाव और समर्पण किसी और संदर्भ में हैं... फिर भी ब्लॉग का पहला पोस्ट पूज्य पिताजी के लिए/ प्रस्तुत कविता श्री मिलाप दूगड़ जी के काव्य-संग्रह 'पीयूष दंश' से ली गई है)
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दुलाराम सहारण
चूरू-राजस्थान
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