मिलन – काल का एक एक पल,
अनुपम अनुभव – धाम बन गया।
पा ली तेरी स्नेह – दृष्टि अब,
लगता मेरा काम बन गया।
उस दिन जिस-जिस भाग्यवान को
स्पर्श मिला था तेरा,
रोम-रोम वह, रन्ध्र-रन्ध्र वह
पुलकित रहता मेरा।
वह स्पन्दन, स्फुरण सुमनशर
नित-नव अनुसन्धान बन गया।
तेरी चारु चेष्टा, मेरा
उर कर गई तरंगित,
मेरा हर पल, हर क्षण तेरी
प्रियता से आप्लावित
स्मृति की चूनर में तारों का
झिल-मिल दिव्य वितान बन गया।
सांसों की स्वर-लय संगति में
शब्द अकथ सज पाना,
अधरसुधा-सिंचित हृदयों का
एक-रूप हो जाना।
रस से भींगा युग-प्रसून वह
जीवन की मुस्कान बन गया।
स्मृति- मंदिर में उस निमेष की
प्राण-प्रतिष्ठा कर ली,
रीति-नीति से अर्चन-पूजन
की भी निष्ठा भर ली।
पर मिलाप के मधुर ध्यान में
विरह-ध्यान व्यवधान बन गया।
- मिलाप दूगड़
सभी चित्र 1 दिसंबर 2009 के हैं। इसमें श्री मिलाप दूगड़ मॉरीशस के राष्ट्रपति व उनकी श्रीमति के साथ प्रवासी फिल्म फेस्टिवल के समारोह सम्राट होटल दिल्ली मेंहामहिम अनिरूद्ध जगन्नाथ ।
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