नील-पटल से श्यामल-घट की
आहट पाई आज।
भूतल की पायल में नूतन
रुन-झुन छाई आज।
कबसे ही धरती ने केवल
तेरी आस लगाई,
किसी और से कैसे जाती
इसकी प्यास बुझाई ?
तेरी आहट सुन मन-कलिका
स्मित मुसकाई आज।
सहसा सर-सर हवा बही तो
धरती ने कुछ भांपा
उड़ा न ले प्रिय को यह सौतन
सोच कलेजा कांपा।
उसे हिमालय भैया ने झट
पकड़ बिठाई आज।
-मिलाप दूगड़
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