सोमवार, 7 जून 2010

घात

-मिलाप दूगड़

तूने एक तीर झोंका था।

बहुत तुझे रोका था।

ऐसा घात झेलने का वह

पहली ही मौका था।

अंग-अंग में मस्ती भर कर

दौड़ी सुन बंसी-स्वर मनहर

अवसर धर सत्वर शर मारा


कहर भरा धोखा था!

प्रथम वार ही बेध गया उर

कैसी कसक कर गई आतुर

इस पथ पर बढ़ने से पहले

कब-किसने टोका था!

तुझको क्या, बस बाण चला कर

डूब गए अपने में, जा कर,

मेरे ऊपर क्या बीतेगी

कभी जरा सोचा था ?

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