शनिवार, 5 जून 2010

वेणी के फूल




बिखरे चारों ओर कहो

किसकी वेणी के फूल !

अचरज है, जाने उसको ही

क्यों जाता हूं भूल !

प्रिय- नि:श्वासित, स्पर्श-सुवासित

स्नेहल बहे समीर,

जिसकी देन उसे विस्मृत कर

मन अत्यंत अधीर।

उसके सिवा कौन हो सकता

हेतु रहित अनुकूल !

हे अत्यंत! आनंद-प्रेम-धन

आकृति के आकार,

अपने उपवन में तू ही तू

है नित-नव साकार।

जब-जब तुझे बिसारूं तब-तब

भले चुभाना शूल।

-मिलाप दूगड़

प्रस्तुत पेंटिंग्स श्री मिलाप दूगड़ के द्वारा बनाई हुई हैं।

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