गुरुवार, 3 जून 2010

आहट

नील-पटल से श्यामल-घट की

आहट पाई आज।

भूतल की पायल में नूतन

रुन-झुन छाई आज।

कबसे ही धरती ने केवल

तेरी आस लगाई,

किसी और से कैसे जाती

इसकी प्यास बुझाई ?

तेरी आहट सुन मन-कलिका

स्मित मुसकाई आज।

सहसा सर-सर हवा बही तो

धरती ने कुछ भांपा

उड़ा न ले प्रिय को यह सौतन

सोच कलेजा कांपा।

उसे हिमालय भैया ने झट

पकड़ बिठाई आज।

-मिलाप दूगड़

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